जननायक कर्पूरी ठाकुर

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जननायक कर्पूरी ठाकुर

जननायक कर्पूरी ठाकुर एक प्रखर स्वतंत्रता सेनानी, कर्मठ षिक्षक, समाज के पुरोधा, स्वच्छन्दवादी पुरूष तथा गरीबों शोषितों व दलितों के अधिकारों के रक्षक और मसीहा रहे हैं। नीति को भी जनसेवा की भावना के साथ जीया। राजनीतिक व सामाजिक कार्यों में इनका योगदान ना केवल बिहार वरण राष्ट्रीय स्तर पर है। इन्होंने अपने कर्मयोग से भारतीय महापुरुषों में अपना नाम सुनहरे अक्षरों में दर्ज कराये हैं। कर्पूरी ठाकुर, डाॅ0 लोहिया, जयप्रकाष नारायण, अम्बेडकर आदि की श्रृंखला में अन्तिम कड़ी थे। कर्पूरी ठाकुर ताउम्र गरीबों, असहायों, पिछड़ों व शोषितों के लिए लड़ते रहे। वे सदा समाज के अंतिम पायदान पर रहने वालों के अधिकारों के लिए खड़े रहे। इनका सारा जीवन संघर्षमय रहा। बिहार के सपूत जननायक कर्पूरी ठाकुर आधुनिक बिहार के निर्माताओं में एक हैं। इन्होंने अपना सफर शून्य से प्रारम्भ कर राज्य के सर्वोच्च स्थान को ना केवल प्राप्त किये वरण लोगों के दिलों पर भी राज्य किये और ‘‘जननायक‘‘ कहलाये।

‘होनहार वीरवान के होत चिकने पात‘

इस कहावत को चरितार्थ करते हुए कर्पूरी ठाकुर 8वीं कक्षा में ही अखबारों के माध्यम से देष-विदेष के सामाजिक व राजनीतिक परिघटनाओं के बारे में पढ़ कर अपने मस्तिक में एक खाका बनाने लगे। यह समय था - 1936 से 1939। अंग्रेजों द्वारा 1939 में भारत को द्वितीय विष्व युद्ध में बिना भारतीयों के अनुमति के शामिल करने के राष्ट्रव्यापी विरोध में कर्पूरी ठाकुर भी शामिल हो गये थे। इस समय इनकी उम्र मात्र 15 वर्ष थी। 1942 ई. में 9 अगस्त को महात्मा गाँधी के भारत छोड़ो आन्दोलन में ये अपनी पढ़ाई हमेषा के लिए छोड़ अपने पूरे तन मन से इस आन्दोलन में शामिल हो गये। इस दौरान उन्हें जेल भी जाना पड़ा। सिंघवाड़ा ;दरभंगाद्ध में छात्रों को नेतृत्व इन्होंने इस भारत छोड़ो आन्दोलन के समय किया। लोकनायक जयप्रकाष नारायण के साथ इन्होंने ‘‘आजाद दस्ते‘‘ के सक्रिय सदस्य के रूप में काम किये और लगभग 13 महीने जेल में रहे। जेल में ही वे कैदियों के साथ हो रहे अन्याय के विरुद्ध 28 दिन का भूख हड़ताल किया और अंग्रेजी सरकार से अपनी मांगे मंगवाये।

15 अगस्त 1947 ई. को भारत आजाद हुआ। कर्पूरी ठाकुर अब आजाद भारत में अपने सपनें और लक्ष्य प्राप्ति के लिए अग्रसर हुए। कर्पूरी ठाकुर का संघर्ष अब सच्चे मायनों में शुरू हुआ था। वे गरीबों पिछड़ों, दलितों व समाज के अंतिम पायदान पर खड़े लोगों के लिए सामेती सरकार से संघर्ष कराना शूरू किये जो भारतीयों के द्वारा चुनी हुई सरकार थी। इसी संघर्षमयी सफर में पिछड़ी शोषित जाति के झोपड़ी के इस लाल ने कई महत्वपूर्ण पड़ाव अपने जीवनकाल में प्राप्त किये, जो बाद के आने वाली पीढ़ीयों के लिए एक मानक आदर्ष हैं। इनकी उपलब्धियों में 1941 ई. में यथा-लाईब्रेरियन बनने से लेकर 1970 ई. में बिहार के ग्यारहवें मुख्यमंत्री बनने तक का सफर शमिल है। कर्पूरी ठाकुर पहली बार उपमुख्यमंत्री और षिक्षा मंत्री 5 मार्च 1967 ई. में बने थे और 21 अप्रैल 1968 ई. तक रहे। कर्पूरी ठाकुर पहली बार 22 सितम्बर 1970 से 2 जून 1971 तक एवं दूसरी बार 24 जून 1977 से 21 अप्रैल 1979 तक बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में रहे।

व्यक्तिगत जीवन

कर्पूरी ठाकुर भारतीय समाजवादी राजनीति के एक सर्वाधिक दैदीप्यमान सितारे है। ये अंधकार को चीरता हुआ वो लौ हैं जो खुद एक अंधकारमय स्थिति परिस्थिति में उत्पन्न हुए और अपने कर्मयोग के बल पर खुद प्रकाषमान हुए ही औरों को भी प्रकाषित किए। असहायों, पिछड़ों दलितों व शोषितों के मसीहा कर्पूरी ठाकुर का जन्म 24 जनवरी 1924 ई. को तब के बिहार और उड़ीसा प्रान्त के, ब्रिटिष भारत के समस्तीपुर जिलान्तर्गत पितौंझिया गाँव व अब के बिहार के समस्तीपुर के कर्पूरी ग्राम में हुआ था। उनके पिता का नाम गोकुल ठाकुर था, जो एक नाई जाति के सीमांत किसान थे, जिनका पेषा नाई का था। इनकी माता का नाम रामदुलारी देवी तथा पत्नी का नाम फुलेष्वरी देवी था। पिछड़ी जाति ‘‘नाई‘‘ जाति के होने के कारण इनके परिवार की सामाजिक व आर्थिक आदि परिस्थिति अच्छी नहीं थी। उन्हें खाने को कभी-कभी बासी खाना या कभी-कभी वे भी नहीं मिलती थी। इस सब परिस्थितियों के बावजूद इन्होनें षिक्षा ग्रहण करना प्रारम्भ किये और दिन दुनी रात चैगुनी अपने कर्मयोग से अपना लक्ष्य पाने को अग्रसर हो गये। फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखे। इनकी प्रारम्भिक षिक्षा तिरहुत एकेडमी, समस्तीपुर में हुई इसके बाद इनका दाखिला पितौंझिया से 6 किमी0 दूर समस्तीपुर स्थित न्यू हाई स्कूल में कराया गया। जहाँ से रोज पैदल नंगे पाॅव आते जाते थे। कर्पूरी ठाकुर मैट्रिक द्वितीय श्रेणी से उतीर्ण और उच्च षिक्षा के लिए दरभंगा के सी एम काॅलेज में दाखिला लिए। उसके बाद पटना विष्वविद्यालय में इन्होंने वी.ए. कक्षा में दाखिला लिया, जिसे इन्होंने भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दिया। कर्पूरी ठाकुर सुभाषचन्द्र बोस के गुलाम भारत में शादी नहीं करने के फैसले से प्रभावित होकर गुलाम भारत में सच्चा नहीं करने का फैसला लिये। क्योंकि उनकी शादी बचपन में ही हो गई थी। कर्पूरी ठाकुर व्यक्तिगत रूप से एक बहुत ही साधारण व्यक्ति खुद को मानते थे। इसका प्रमाण हमें इनके जीवन में कई बार देखने को मिलता है। जो इस महान शख्सीयत की महानता का जीवन्त प्रमाण है।

राजनीतिक जीवन

कर्पूरी ठाकुर का राजनीतिक जीवन आज सबके लिए एक आदर्ष है। उनके जैसे राजनीतिज्ञ आज विष्वसनीय है। उनका पूरा राजनीतिक जीवन सिद्धान्तों पर आधारित रहा। उन पर डाॅ. अम्बेडकर, महात्मा गाँधी, पेरियार, डाॅ. लोहिया, लोकनायक जयप्रकाष नारायण, चैधरी चरण सिंह आदि का प्रभाव रहा है। कर्पूरी ठाकुर समाजवादी लोक कल्याणकारी विचारधारा के थे। इनके अनुयायिओं में लालू प्रसाद यादव, नीतिष कुमार, रामविलास पासवान आदि अनेक नेता गण है। इन्हें खुद से हर विचारधारा को मानने वाले दल जोड़ते रहे हैं। कर्पूरी ठाकुर के राजनीतिक प्रतिद्वन्द्वी एवम् उन पर घात करने वाले राजनीतिज्ञ ने भी उनकी प्रषंसा में लिखा ‘‘श्री ठाकुर स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी समाजवादी आन्दोलन के अग्रणी कुषल प्रषासक तथा विरोधी दल के नेता के रूप में बिहार एवं देष की सेवा करते रहे।‘‘

कर्पूरी ठाकुर का राजनीतिक प्रषिक्षण 3-4 दिसम्बर 1938 को समाजवादियों के सम्मेलन से शुरू हुआ जिसमें आचार्य नरेन्द्र देव, राहुल सांकृत्यायन, रामवृक्ष बेनीपुरी आदि भाग लेने आये थे। इसके अलावा अखबार पढ़ने की आदत ने उन्हें देष-विदेष के राजनीतिक व सामाजिक परिघटनाओं से रू-ब-रू कराया, जिससे वे कच्ची उम्र में ही परिपक्व मस्तिक के व्यक्ति बन गये। स्वतंत्रता संग्राम में अपना महत्वपूर्ण योगदान के बाद स्वतंत्र भारत में असहायों पिछड़ों व दलितों का आवाज बने और ताउम्र उनके अधिकारों के लिए लड़ते रहे। 1952 ई. में पहला विधानसभा चुनाव हुआ जिसमें कर्पूरी ठाकुर ताजपुर विधानसभा सीट से जीत हासिल किये और ताउम्र अपराजित रूप से विधान सभा के सदस्य रहे। इस दौरान वे कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे तथा कई फैसले लिए। जैसे 1967 ई. में षिक्षा मंत्री के रूप में इन्होंने मैट्रिक से अंग्रेजी की अनिवार्यता समाप्त कर दी। 1970-71 ई. में मुख्यमंत्री रहते हुए इन्होंने हाई स्कूल का सरकारीकरण किया। 1977-79 ई. में अपने दूसरे मुख्यमंत्रित्व काल में उन्होंने षिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी निर्णय लेते हुए बिहार में मैट्रिक तक की षिक्षा निःषुल्क कर दी। रोजगार में उन्होंने 6000 जूनियर इंजिनियर और 4000 डाॅक्टरों को गाँधी मैदान में एक नियुक्ति पत्र वितरीत किये। किसान मजदूरों के लिए उन्होंने छोटे और अलाभकर जोतों पर से मालगुजारी (भूमिकर) हटा दी। भ्रष्टाचार उन्मूलन, अन्तर्जातीय विवाह करने वालों के लिए सरकारी नौकरी आदि की योजना शुरू किये। उनका सबसे महत्वपूर्ण कार्य बिहार में ‘‘मुंगेरी लाल आयोग‘‘ की सिफारिषों के अनुरूप पिछड़े, महिलाओं और कमजोर वर्ग के सवर्णों के लिए सरकारी नौकरी में आरक्षण की घोषणा है। पिछड़े वर्ग के लिए 8ः, अत्यन्त पिछड़ा वर्ग के लिए 12ः, महिला के लिए 3ः और आर्थिक दृष्टि से कमजोर सवर्णों के लिए 3ः (कुल 26ः) आरक्षण की व्यवस्था थी। इस आरक्षण के कारण उन्हें अपनी सरकार गवाँनी पड़ी, परन्तु ये हारे या झुके नहीं। बेलछी ग्राम में 21 दलितों की निर्मम हत्या दुष्टों द्वारा कर दिया गया था। जिससे कर्पूरी जी बहुत दुखी हुए और ठानी कि पिछड़े दलितों को भी आत्मरक्षार्थ बन्दुक रखने की अनुमति दिलाना है। जिसे इन्होंने अपने दुसरे मुख्यमंत्रित्व काल में पूरा करने के लिए 1600 बन्दूक भी लाये परन्तु आगे कुछ करने से पहले इनकी सरकार गिर गई।

कर्पूरी ठाकुर विपक्षी नेता के रूप में भी अपना महत्वपूर्ण निशच्छल, नैतिक तथा जिम्मेदारी पूर्वक ईमानदारी भरा योगदान दिये। जरूरत के अनुसार ये सत्ता पक्ष या विपक्ष में रहे। सत्ता पक्ष इनके भय से कोई भी अकल्याणकारी योजना नहीं लाती थी। ऐसे थे हमारे महान जनप्रिय जननायक कर्पूरी ठाकुर। बिहार का यह महान कर्मयोगी सपूत 64 साल की उम्र में 17 फरवरी 1988 ई. को दिल का दौरा पड़ने से चीर काल तक सो गया। जननायक कर्पूरी ठाकुर हमसबों के दिलों में हमेषा जीवित रहेंगे।

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